Class 8 sanskrit chapter 12 hindi translation part - 1

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द्वादशः पाठः

कः रक्षति कः रक्षितः


Hindi translation


Part - 1



(ग्रीष्मर्ती सांयकाले विद्युदभावे प्रचंडोष्मा पीड़ित: वैभव: गृहात निष्क्रामति)

गर्मी की ऋतु में शाम को बिजली के अभाव में तेज़ गर्मी के द्वारा पीड़ित वैभव घर से बाहर निकलता है।




वैभव - अरे परमिंदर! अपि त्वमपि विदयुदभावेन पीड़ितः बहिरागत ?

वैभव- अरे परमिंदर! क्या तुम भी बिजली के अभाव से पीड़ित होकर बाहर आ गए हो?




परमिंदर - आम् मित्र! एकत: प्रचंडातपकाल: अन्यतश्च विद्युदभावः परं बहिरागत्यापि पश्यामि यत् वायु वेग: तु सर्वथाऽवरुद्धः। सत्यमेवोक्तम्

परमिंदर - हाँ, मित्र! एक तो तेज़ गर्मी का समय दूसरे बिजली का अभाव - परंतु बाहर आकर भी देखता हूँ कि वायु की गति पूर्णतः रुक गई है सच ही कहा है |




प्राणिति पवनेन जगत् सकलं, सृष्टि निखिला चैतन्मयी क्षणमपि न जीव्यतेऽनेन विना, सर्वातिशायिमूल्यः पवनः ।।

पवन के द्वारा समस्त जगत तथा चैतन्यपूर्ण यह समग्र सृष्टि जीवित है। इसके बिना क्षण भर भी जीवित नहीं रहा जाता है। सबसे अधिक मूल्य वाली वायु है।




विनयः - अरे मित्र! शरीरात न केवलं श्वेद बिंदव: अपितु श्वेदधाराः इव प्रस्रवन्ति स्मृतिपथमायति शुक्ल महोदयै: रचितः श्लोकः

अरे मित्र! शरीर से ना केवल पसीने की बूँदे अपितु पसीने की नदियाँ बह रही हैं।




तप्तैर्वाताघातैरवितुं लोकान् नभसि मेघाः, आरक्षि विभागजना इव समये नैव दृश्यन्ते।

शुक्ल महोदय के द्वारा रचित श्लोक याद आ रहा है गर्म लू से संसार की रक्षा करने के लिए आकाश में बादल पुलिस विभाग के लोगों के समान समय पर दिखाई नहीं पड़ते हैं।




परमिंदर - आम् अद्य तु वस्तुतः एव

परमिंदर - हाँ, आज तो वास्तव में गर्मी के ताप




निदाघतापतप्तस्य याति तालु हि शुष्कताम्। पुंसो . भयार्दितस्येव, स्वेदवज्जायते वपुः ।

पीड़ित मनुष्य का तालु सूख जाता है। - भयभीत मनुष्य का शरीर पसीने से तर हो जाता है।




जोसेफ: - मित्राणि ! यत्र तत्र बहुभूमिकभवनानां भूमिगतमार्गाणाम् विशेषत: मैट्रो मार्गाणां उपरिगामिसेतूनाम् मार्गेत्यादीनां निर्माणाय वृक्षा: कर्त्यन्ते तर्हि अन्यत् किमपेक्ष्यते अस्माभिः ? वयं तु विस्मृतपन्तः एव |

जोसेफ: - जोसेफ मित्र जहाँ- तहाँ- अत्यधिक पृथ्वी पर भवनों का भूमिगत मार्गों का विशेष रूप से मैट्रो के मार्गों का ऊपर से गुजरने वाले पुलों का इत्यादि के निर्माण के लिए वृक्ष काटे जाते हैं। अवश्य ही हमसे क्या अपेक्षा की जाती है? हम तो भूल ही गए




एकेन शुष्कवृक्षेण दृह्यमानेन वह्निना। दह्यते तद्वनं सर्वं कुपुत्रेण कुलं यथा | 

अग्नि के द्वारा जलाए जाते हुए एक सुखे वृक्ष के द्वारा ही सारा वन जला दिया जाता है, जिस प्रकार कुपुत्र के द्वारा कुल नष्ट हो जाता है)




परमिंद्र - आम् एतदपि सर्वथा सत्यम् ! आगच्छन्तु नदीतीरं गच्छामः ।तत्र चेत् काञ्चित् शान्तिं प्राप्तुं शक्ष्येम।

परमिंद्र - हाँ यह भी सत्य है । आओ नदी के किनारे चलते हैं। वहाँ कुछ शांति प्राप्त कर सकेंगे।



Chick on this to go second part


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Part - 2

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