Class 8 sanskrit chapter 11 hindi translation

 एकादशः पाठः

सावित्री बाईफुले



Hindi translation




उपरि निर्मितं चित्रम् पश्यत । इदम् चित्रम् कस्याश्चित् पाठशालायाः वर्तते । इयं सामान्या पाठशाला नास्ति । इयमस्ति महाराष्ट्रस्य प्रथमा कन्या पाठशाला एका शिक्षिका गृहात् पुस्तकानि आदाय चलति ।

ऊपर बने हुए चित्र को देखो। यह चित्र किसी पाठशाला का है । यह सामान्य पाठशाला नहीं है। यह महाराष्ट्र की पहली कन्या पाठशाला है। एक अध्यापिका घर से पुस्तके लेकर चलती है |




मार्गे कश्चित् तस्याः उपरि धूलिं कश्चित् च प्रस्तरखण्डान् क्षिपति। परं सा स्वदृढनिश्चयात् न विचलति । स्वविद्यालये कन्याभिः सविनोदम् आलपन्ती सा अध्यापने संलग्ना भवति । तस्याः स्वकीयम् अध्ययनमपि सहैव प्रचलति । केयं महिला ? अपि यूयमिमां महिलां जानीथ? | इयमेव महाराष्ट्रस्य प्रथमा महिला शिक्षिका सावित्री बाई फुले नामधेया।

रास्ते में कोई उसके ऊपर धूल और पत्थर के छोटे टुकड़े फेंकता है परंतु वह अपने दृढ़ निश्चय से विचलित नहीं होती। अपने विद्यालय में कन्याओं के साथ हँसी मजाक करती हुई अपने अध्यापन में लगन से लगी रहती है। उसका अपना अध्ययन भी साथ ही चलता है। कौन है यह महिला ? तुम भी इस महिला को जानो? यह ही महाराष्ट्र की पहली महिला अध्यापिका सावित्रीबाई फुले है।



जनवरी मासस्य तृतीय दिवसे 1831 तमे ई. महाराष्ट्रस्य नायगांव नाम्नि सावित्री अजायत । तस्याः माता लक्ष्मी बाई पिता च खंडो र्जी इति अभिहिती नववर्ष देशीया सा ज्योतिबा फुले महोदयेन परिणीता सोऽपि तदानीं त्रयोदशवर्षकल्पः एव आसीत्।

जनवरी मास के तीसरे दिन 1831 ई. में महाराष्ट्र के नाय गाँव नामक स्थान पर सावित्री का जन्म हुआ। उसकी माता का नाम लक्ष्मी बाई और पिता जी खंडो जी कहे गए हैं। 9 वर्ष की आयु में उनका विवाह ज्योतिबा फुले महोदय से हुआ। वह भी उस समय केवल 13 वर्ष के ही थे।




यतोहि सः स्त्रीशिक्षाया: प्रबल समर्थकः आसीत् अतः सावित्र्याः मनसि स्थिता अध्ययनभिलाषा उत्सं प्राप्तवती । इतः परम सा साग्रहम् आङ्ग्लभाषाया अपि अध्ययनं कृतवती । 1848 तमे पुणे नगरे सावित्री ज्योतिबामहोदयेन सह कन्यानां कृते प्रदेशस्य प्रथमं विद्यालयम् आरभत । तदानीं सा केवलं सप्तदशवर्षीया आसीत् 1851 तमे शताब्दे अस्पृश्यत्वात् तिरस्कृतस्य समुदायस्य बालिकानां कृते पृथक्तया तया अपर: विद्यालय: प्रारब्धः।

क्योंकि वे स्त्री शिक्षा के प्रबल समर्थक थे इसलिए सावित्री के मन में पढ़ने की - अभिलाषा को उत्साह प्राप्त हुआ। इससे भी बढ़कर उसने अंग्रेजी भाषा का भी अध्ययन किया। 1848 ई. में पुणे नगर में सावित्री ने ज्योतिबा महोदय के साथ मिलकर कन्याओं के लिए प्रदेश का पहला विद्यालय खोला। उस समय वह केवल 17 वर्ष की थी 1851 ई. छुआछूत से अपमानित समुदाय की लड़कियों के लिए अलग से दूसरा विद्यालय आरंभ किया।




सामाजिक कुरीतीनां सावित्री मुखरं विरोधम् अकरोत् । विधवानां शिरोमुण्डनस्य निराकरणाय सा साक्षात् नापित: मिलिता । फलत: केचन नापिताः अस्यां रूढौ सहभागिताम् अत्यजन् । एकदा सावित्र्या मार्गे दृष्टं यत् कूपं निकषा शीर्णवस्त्रावृताः तथाकथिता: निम्नजातीया: काश्चित् नार्यः जलं पातुं याचन्ते स्म ।

सामाजिक बुराइयों का सावित्री ने डटकर विरोध किया। विधवाओं के सिर मुंडन को रोकने के लिए वह साक्षात् नाईयों से मिली। फलस्वरुप की कुछ नाईयों ने इस प्रथा में भाग लेना छोड़ दिया। एक बार सावित्री ने देखा कि फुटे पुराने वस्त्रों वाली लोगों द्वारा कही गई निम्न जाति की कुछ नारियाँ जल पीने के लिए माँग रही थी।




उच्चवर्गीया: उपहासं कुर्वन्तः कूपात् जलोद्धरणं अवारयन सावित्री एतत् अपमानं सोढुं नाशक्नोत् । सा ताः स्त्रिय: निजगृहम् नीतवती । तड़ागं दर्शयित्वा अकथयत् च यत् यथेष्टं जलं नयत् । सार्वजनिकोऽयं तडागः । अस्मात् जलग्रहणे नास्ति जातिबन्धनम् । तया मनुष्याणां समानताया: स्वतन्त्रतायाश्च पक्ष: सर्वदा सर्वथा समर्थितः ।

उच्च जाति की मजाक करती हुई कुएँ से जल निकाल रही थी सावित्री इस अपमान को सहन न कर सकी। वह उन स्त्रियों को अपने घर ले आई। तालाब दिखलाया और कहा जितना चाहे जल ले लो। यह तालाब सबके लिए है इससे जल लेने के लिए जाति का कोई बंधन नहीं है। उसने लोगों की स्वतंत्रता एवं समानता के पक्ष में सदा समर्थन किया |




महिला सेवा मण्डल 'शिशु हत्या प्रतिबन्धक गृह' इत्यादीनां संस्थानां स्थापनायां फुलेदम्पत्यों: अवदानम् महत्त्वपूर्णम् । सत्यशोधक मण्डलस्य गतिविधिषु अपि सावित्री अतीव सक्रिया आसीत् । अस्य मण्डलस्य उद्देश्यम् आसीत् उत्पीडितां समुदायानां स्वाधिकारान् प्रति जागरणम् इति।

महिला सेवा मंडल व शिशु हत्या प्रतिबंधक गृह इत्यादि संस्थाओं की स्थापना में फुले दंपत्ति का महत्त्वपूर्ण योगदान है। सत्यशोधक मंडल की गतिविधियों में भी सावित्री आगे रही। इस मंडल का उद्देश्य उत्पीड़ित समुदायों को उनके अधिकारों के प्रति जागरूक करना था |




सावित्री अनेका: संस्था प्रशासन कौशलेन संचालितवती दुर्भिक्ष काले प्लेग काले च सा पीड़ित जनानाम् अश्रान्तम् अविरतं च सेवाम् अकरोत् । सहायता सामग्री व्यवस्थायै सर्वथा प्रयासम् अकरोत् । महारोग प्रसारकाले सेवारता सा स्वयम् असाध्यरोगेण ग्रस्ता 1897 ई. निधनं गता ।

सावित्री ने अनेक संस्थाओं का प्रशासन कुशलता से चलाया। अकाल के समय प्लेग से पीड़ित लोगों की बिना थके हुए और लगातार सेवा की सहायता सामग्री की व्यवस्था के लिए उसने पूर्ण रूप से प्रयत्न किया। महारोग के प्रसार के समय सेवा में लगी हुई वह स्वयं असाध्य रोग से ग्रस्त होकर 1897 ई. में मृत्यु को प्राप्त हो गई।




साहित्यरचनया अपि सावित्री महीयते । तस्याः काव्य संकलनद्वयं वर्तते काव्य फुले' सुबोध रत्नाकर चेति । भारत देशे महिलोत्थानस्य गहनावबोधाय सावित्री महोदयायाः जीवन चरितम् अवश्यम् अध्येतव्यम् ।

साहित्य रचना में भी सावित्री महान थी। उनके दो काव्य 'काव्य फुले' और 'सुबोध रत्नाकर' हैं। भारत देश में महिलाओं के उत्थान को गहराई से जानने के लिए सावित्री महोदया का जीवन चरित्र ज़रूर पढ़ना चाहिए।





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