Class 8 sanskrit chapter 10 hindi translation
दशमः पाठः
नीतिनवनीतम्
Hindi translation
1. अभिवादनशीलस्य नित्यं वृद्धोपसेविन: ।
चत्वारि तस्य वर्धन्ते आयुर्विद्या यशो बलम्।।
अनुवाद- स्वभाव से हमेशा प्रणाम करने वाले की, बड़े बूढ़ों की सेवा करने वाले की चार चीजें बढ़ती हैं- आयु, विद्या, यश और बल ॥
2.थं मातापितरौ क्लेशं सहते सम्भवे नृणाम |
न तरथ निष्कृति: शक्या कर्तुं वर्षशरीरपि।।
अनुवाद - जब माता-पिता मनुष्य (बच्चे) को जन्म देते समय जो कष्ट सहन करते हैं, उसका बदला सौ वर्षों तक भी नहीं चुकाया जा सकता।
3. तयोर्नित्यं प्रियम् कुर्यादाचार्यस्य च सर्वदा ।
तेष्वेव त्रिषु तुष्टेषु तपः सर्वः समाप्यते ।।
अनुवाद उन दोनों का (माता पिता) और गुरु का हमेशा प्रिय करना चाहिए। उन तीनों के प्रसन्न होने पर सभी तप समाप्त हो जाते हैं।
4. सर्वं परवशं दुःखं सर्वमात्मवशं सुखम् ।
एतद्विद्यात्समासेन लक्षणं सुखदुःखयोः ।।
अनुवाद - दूसरों के अधीन होने पर हमेशा दुखी होते हैं, अपने वश में हमेशा सुखी रहते हैं। सुख-दुख की यह संक्षिप्त में परिभाषा दी गई है ।
5. यत्कर्म कुर्वतोऽस्य स्यात्परितोषोऽन्तरात्मनः ।
तत्प्रयत्नेन कुर्वीत विपरीतं तु वर्जयेत् ।।
अनुवाद - जिस काम को करते समय आत्मा को संतोष मिलता है, उस कार्य को प्रयत्न पूर्वक करना चाहिए। उसके विपरीत छोड़ देना चाहिए।
6. दृष्टिपूतं न्यसेत्पादं वस्त्रपूतं जलं पिबेत् ।
सत्यपूतां वदेद्वाचं मनः पूतं समाचरेत् ।।
अनुवाद दृष्टि से पवित्र कदम रखने चाहिए कपड़े से छानकर पानी पीना चाहिए, सत्य से पवित्र वाणी को बोलना चाहिए, मन से पवित्र आचरण करना चाहिए।
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