Class 8 sanskrit chapter 2 hindi translation
द्वितीयः पाठः
बिलस्य वाणी न कदापि मे श्रुता
Hindi translation
कस्मिश्चित् वने खरनखरः नाम सिंहः प्रतिवसति स्म। सः कदाचित् इतस्ततः परिभ्रमन् क्षुधार्तः न किंचिदपि आहार प्राप्तवान्। ततः सूर्यास्तसमये एकां महतीं गुहां दृष्ट्वा सः अचिन्तयत्- "नूनम् एतस्यां गुहायां रात्रौ कोऽपि जीवः आगच्छति। अतः अत्रैव निगूढो भूत्वा तिष्ठामि' इति।
किसी वन में खरनखर नामक एक शेर रहता था | एक दिन की बात है ,वह बहुत भूखा था और भूख से व्याकुल होकर वह जंगल में खाने के खोज में इधर-उधर घूम रहा था | पर उसे भोजन कहीं नहीं मिला | सूर्यास्त के समय उसे एक बड़ी गुफा दिखी, उस गुफा को देखकर उसने सोचा, " अवश्य रात में कोई जीव इस गुफा में आएगा| अतः = मुझे यहीं छिपकर रहना चाहिए।" शेर वहां छिपकर इंतजार करने = लगा ताकि कोई जीव आये और वह उसे अपना भोजन बना ले |
एतस्मिन् अन्तरे गुहायाः स्वामी दधिपुच्छः नामकः शृगालः समागच्छत्। स च यावत् पश्यति तावत् सिंहपदपद्धतिः गुहायां प्रविष्टा दृश्यते, न च बहिरागता। शृगालः अचिन्तयत्-" अहो विनष्टोऽस्मि। नूनम् अस्मिन् बिले सिंहः अस्तीति तर्कयामि। तत् किं करवाणि?" एवं विचिन्त्य
इस अंतराल में गुफा का स्वामी दधिपुच्छ नामक सियार वहां आता है | जब वह वहां देखता है तब उसे पता चलता है की शेर के पैरों के निशान गुफा अन्दर तो गए हैं पर बाहर नहीं आये हैं ( इसका मतलब शेर अभी भी गुफा के अन्दर है)सियार ने सोचा अब तो मैं मरूंगा! अवश्य ही मेरे बिल में एक शेर है। अब मैं क्या करूं?"
दूरस्थः रवं कर्तुमारब्धः-" भो बिल भो बिल किं न स्मरसि, यन्मया त्वया सह समयः कृतोऽस्ति यत् यदाहं बाह्यत: प्रत्यागमिष्यामि तदा त्वं माम् आकारयिष्यसि? यदि त्वं मां न आह्वयसि तर्हि अहं द्वितीयं बिलं यास्यामि इति।"
कुछ सोच कर सियार कुछ दूरी पर जाकर बोलता है -" हे बिल! हे बिल! क्या तुम्हे नहीं याद है, मेरी तुम्हारे साथ शर्त कि जब मैं यहाँ बाहर आऊँगा तब तुम मेरा आह्वान ( पुकारना ) करोगी | यदि तुम मेरा आह्वान नहीं करोगी तो मैं दुसरे बिल में रहने चला जाऊंगा।
अथ एतच्छुत्वा सिंहः अचिन्तयत्-"नूनमेषा गुहा स्वामिनः सदा समाह्वानं करोति। परन्तु मद्भयात् न किञ्चित् वदति।"
अथवा साध्विदम् उच्यते
यह सुनकर शेर सोचता है - " अवश्य ही यह गुफा अपने स्वामी का सदा आह्वान करती हो होगी परन्तु अभी यह गुफा मेरे डर से ऐसा नहीं कर रही है।
भयसन्त्रस्तमनसां हस्तपादादिकाः क्रिया:।
प्रवर्तन्ते न वाणी च वेपथुश्चाधिको भवेत्।।
अतः यह सही कहा गया है डरे हुए मन वालों की बोलने और हाथ-पैर आदि की क्रियाएं नहीं प्रयुक्त होती हैं और वे अधिक कांपते हैं।
तदहम् अस्य आह्वानं करोमि। एवं स: बिले प्रविश्य मे भोज्यं भविष्यति। इत्थं विचार्य सिंहः सहसा शृगालस्य आह्वानमकरोत्। सिंहस्य उच्चगर्जन प्रतिध्वनिना सा गुहा उच्चै: शृगालम् आह्वयत्। अनेन अन्येऽपि पशवः भयभीताः अभवन्। शृगालोऽपि ततः दूरं पलायमानः इममपठत्
"तो अब मै आह्वान करूंगा और इस बिल में मेरा भोजन आएगा "| यह सोचकर शेर ने अचानक सियार का आह्वान किया | शेर की ऊची दहार से पूरी गुफा गूँज उठी और बहुत जोर से आवाज निकली | जिससे सारे पशु भयभीत हो उठे।सियार भी दूर पलायन करके इसे पढता है।
अनागतं यः कुरुते स शोभते
स शोच्यते यो न करोत्यनागतम्।
वनेऽत्र संस्थस्य समागता जरा
बिलस्य वाणी न कदापि मे श्रुता।।
आने वाले दुःख के बारे में जो सोचता है ( और उसे हल करता है) वह सुखी रहता है | जो ऐसा नहीं करता वह दुखी रहता है| मैं इस जंगल में रहकर बूढा हो चूका हूँ पर मैंने कभी बिल की आवाज़ नहीं सुनी |
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