Class 8 sanskrit chapter 5 sanskrit to hindi translation

 पञ्चमः पाठः

कण्टकेनैव कण्टकम्



Hindi translation





आसीत् कश्चित् चञ्चलो नाम व्याधः।पक्षीमृगादिनां ग्रहणेन स्वीयां जीविका निर्वाहयति स्म । एकदा स: वने जालं विस्तीर्यं गृहम् आगतवान्।अन्यस्मिन् दिवसे प्रात:काले यदा चञ्चल: वनं गतवान् तदा सः दृष्टवान् यत् तेन विस्तारते जाले दौर्भाग्याद् एक बेद्ध: आसीत् ।

कोई चंचल नाम का शिकारी था। पशु-पक्षी आदि को पकड़कर वह अपनी जीविका चलाता था। एक बार वह वन में जाल बिछाकर घर आ गया।दूसरे दिन सुबह जब वह वन में गया तब उसने देखा कि उसके द्वारा बिछाए गए जाल में दुर्भाग्य से एक बाघ फँस गया।



व्याघ्र: क्लान्तः आसीत् ।सोऽवदत् भो मानव ! पिपासुः अहम् । नद्या: जलमानीय मम पिपासां शमय । व्याघ्रः जलं पीत्वा पुनः व्याधमवदत् शमय मे पिपासा | साम्प्रतं बुभुक्षितोऽस्मि। इदानीम् अहं त्वां खादिष्यामि । चञ्चलः उक्तवान् अहं त्वतकृते धर्मम् आचरितवान् ।त्वया मिथ्या भणितम्।त्वं मां खादितुम् इच्छसि ? 

बाघ थका हुआ था।वह बोला- हे मानव! मैं प्यासा हूँ, नदी का जल लाकर मेरी प्यास शांत करो। बाघ ने जल पीकर फिर शिकारी को बोला मेरी प्यास शांत हुई ।।अब मैं भूखा हूँ । इस समय मैं तुम्हें खाऊँगा । चंचल बोला मैंने तुम्हारे लिए धर्म का आचरण किया तुमने मुझे झूठ कहा- तुम मुझे खाने की इच्छा रखते हो?




व्याघ्रः अवदत् अरे मूर्ख! क्षुधार्ताय किमपि अकार्यम् न भवति । सर्व: स्वार्थ समीहते। चञ्चल: नदीजलम् अपृच्छत् । नदीजलम् अवदत्,


बाघ बोला अरे मूर्ख भूख के लिए कोई भी कार्य अकरणीय नहीं होता। सभी स्वार्थी होते हैं। चंचल ने नदी के जल से पूछा। नदी का जल बोला




एवमेव भवति, जना: मयि जलं स्नानं कुर्वन्ति, वस्त्राणि प्रक्षालयन्ति तथा च मल मूत्रादिकं विसृज्य निवर्तन्ते, वस्तुत: सर्व: स्वार्थ: समीहते । चञ्चल: वृक्षम् उपगम्य अपृच्छत् ।वृक्षः अवदत् मानवा: अस्माकं छायायां विरमन्ति।अस्माकं फलानि खादन्ति, पुनः कुठारैः प्रहत्य अस्मभ्यं सर्वदा कष्टं ददति । यत्र कुत्रापि छेदनं कुर्वन्ति । सर्व: स्वार्थ: समीहते।

ऐसा ही होता है, लोग मेरे जल में स्नान करते हैं, कपड़े धोते हैं तथा मल मूत्र छोड़कर लौट जाते हैं या चले जाते हैं वास्तव में सभी स्वार्थी होते हैं। चंचल ने वृक्ष के पास जाकर पूछा । वृक्ष बोला मानव हमारी छाया में विश्राम करते हैं। हमारे फल खाते हैं। फिर कुल्हाड़ी से प्रहार करके हमें हमेशा दुख देते हैं। जहाँ कहीं भी छेद करते हैं। सभी स्वार्थी होते हैं।





समीपे एका लोमशिका बदरी गुल्मानां पृष्ठे निलीना एतां वार्तां शृणोति स्मः ।सा सहसा चञ्चलमुपसृत्य कथयति का वार्ता ? माम् अपि विज्ञापय । सः अवदत् अहह ! मातृस्वस: ! अवसरे त्वं समागतवती । मया अस्य व्याघ्रस्य प्राणा: रक्षिताः, परम् एष: मामेव खादितुम् इच्छति 

पास में ही एक लोमड़ी बेरी की झाड़ियों के पीछे छिपकर यह वार्ता सुन रही थी। वह अचानक चंचल के पास जाकर कहती क्या बात है? मुझे भी बताओ वह बोला अरी! मौसी तुम सही समय पर आई हो । मैंने इस बाघ की प्राणों की रक्षा की परंतु यह मुझे ही खाने की इच्छा रखता है।




तदनन्तरं सः लोमशिकायै निखिलां कथां न्यवेदयत् ।लोमशिका चञ्चलम् अकथयत्-बाढ़म्, त्वं जालं प्रसारय । पुनः: सा व्याघ्रम् अवदत्-केन प्रकारेण त्वम् एतस्मिन् जाले बद्धः इति अहं प्रत्यक्षं द्रष्टुमिच्छामि।व्याघ्र: तद् वृतान्तं प्रदर्शियतुं तस्मिन् जाले प्राविशत् । लोमशिका पुनः अकथयत् -सम्प्रति पुनः पुनः कूर्दनं कृत्वा दर्शय ।स: तथैव समाचरत् ।अनारतं कूर्दनॆन स:श्रान्त: अभवत् ।

उसके बाद उसने लोमड़ी को सारी कथा को बताया।लोमड़ी ने चंचल को कहा अच्छा, तुम जाल फैलाओ फिर वह बाघ से बोली किस प्रकार तुम इस जाल में बँध गए थे यह मैं प्रत्यक्ष देखना चाहती हूँ । बाघ ने उस घटना को दिखाने के लिए उस जाल में प्रवेश किया लोमड़ी फिर कहती है- अब बार-बार कूदकर दिखाओ। उसने वैसा ही आचरण किया लगातार कूदने से वह थक गया ।




जाले बद्धः सः व्याघ्रः क्लान्तः सन् नि:सहायो भूत्वा तत्र अपतत् प्राणभिक्षामिव च अयाचत् । लोमशिका व्याघ्रम् अवदत् 'सत्यं त्वया भणितम् सर्व: स्वार्थ: समीहते'।

जाल में बँधा हुआ वह बाघ थका हुआ निस्सहाय होकर वहाँ गिर गया और प्राणों की भिक्षा माँगने लगा। लोमड़ी ने बाघ से कहा 'तुमने सही कहा' सभी स्वार्थी होते हैं।'





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